ये भारतीयता का विकास है या विनाश
पिछले कुछ वर्षों से ये बात मेरे दिमाग में घूम रही थी, और मैंने इसका कई बार पुनर्मूल्यांकन भी किया और पाया कि शायद मैं ठीक सोच रहा हूँ, राष्ट्र का विकास हो रहा हो या न हो रहा हो, पर भारतीय परम्पराओं और संस्कृति का विनाश अवश्य हो रहा है।आज हम लोग आधुनिकता के अंध_भक्त बन उसका अंधानुकरण कर रहे है, सच कहूं तो पहले जो उलूल जलूल परम्पराओं के प्रति अंध विश्ववास था वो अब खिसक कर आधुनिकता के प्रति बन गया है, और आज उससे कोई भी अछूता नहीं दिखाई दे रहा है, चाहे वो नेता हो या अधिकारी, आम आदमी हो या खास आदमी, फिलहाल सभी भूत को बिन विचारे, भविष्य की चिंता छोड़, वर्तमान में जी रहे है, और उसे आधार पर कार्य कर रहे है।
कल क्या होगा इससे किसी को सरोकार नहीं है, क्योंकि इसके लिए कोई जिम्मेदार भी नहीं है।
राष्ट्र का विकास या एक विशाल बाज़ार का निर्माण :-
ये कोई मजाक या साधारण बात नहीं है, आज कि कार्यशैली का अवलोकन करने पर वह राष्ट्र का विकास कम, एक विशाल बाजार की निर्माण प्रक्रिया अधिक लगती है। आप भारत के किसी भी हिस्से में जाकर कहीं भी देख लें प्रकृति ख़तम हो रही है (ये अलग बात है के प्रकृति को बचाये रखने के लिए अनेकों निरर्थक योजनायें भी चलाई जा रही होंगी, के कार्यशालाएँ आयोजित की जा रही होंगी), गांवो के गाँव शहर में तब्दील हो रहे हैं, उनकी उपजाऊ भूमि को नष्ट करके #soil_erosion #भू_क्षरण #मृदा_अपरदन उसपर कंक्रीट के जंगल बनाये जा रहे है, बहुमंजिला इमारते बन रही है, घर और दुकानें बनाई जा रही है, शौपिंग काम्प्लेक्स बन रहे है, न तो धरती नज़र आती है न आसमान, चाँद सूरज भी किस्से बन रहे हैं , जिससे वायु, जल व थल प्रदूषण बढ़ रहा है, परिवार व समाज टूट रहा है और उनसे सम्बंधित बीमारियां भी बढ़ रही हैं। जिनसे बचने के लिए लोग एयर कंडीशनर व वाटर प्यूरीफायर का प्रयोग कर रहे है, यानी प्रकृति भी दुश्मन बन चुकी है या ये कहें कि इनकी मांग बढ़ रही है और साथ ही, बिमारियों से इलाज के लिए आधुनिक स्वस्थ्य सेवा का प्रचलन भी ।Developing India is not for Indians?
किसी भी स्थान के विकास के स्तर से हम आसानी से किसी स्थान के प्रदुषण, बीमारी और तनाव की स्थिति का अनुमान लगा सकते है, और साथ ही साथ वहाँ पर उपलब्ध व्यवसायिक अवसर व रोजगार जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस बाज़ार की नीव मजबूत करेंगे या दूसरे शब्दों में कहें तो वो इस प्रक्रिया को और आगे बढ़ाएंगे और इसको स्थायित्व प्रदान करेंगे।
दुःख कि बात यह है कि ये बाज़ार मूल भारतीय उत्पाद या जीवनशैली को प्रोत्साहित नहीं करते बल्कि ये उनको कुचल कर एक कृतिम जीवनशैली व अप्राकृतिक उत्पाद जो की बहुरास्ट्रीय कम्पनियों द्वारा बनाये व बेचे जाते है का संवर्धन व परिवर्धन करते है और जो मूल भारतीय सिद्धांतो के अनुकूल नहीं है और आने वाले कुछ सालो में ये साबित भी हो जायेगा, पर क्या हम उस समय तक हो चुके नुकसान कि भरपाई कर सकेंगे । (वैसे आज भी समाज में फैलती गंदगी, कूड़े के समस्या, प्रदुषण व बीमारियाँ, क्या कुछ साबित नहीं करती???)
शिक्षा पद्धति या गुलामो का प्रशिक्षण
चाहे हम कुछ भी कहें, हमारी आज कि शिक्षा पद्धति और हमारी संस्कृति व प्राकृतिक जीवनशैली सर्वथा भिन्न हैं, आज हमारी शिक्षा भाव प्त कर रहे है, जिसमे आत्मा का वास नहीं है, अर्थात वह वास्तविक जीवन में उपयोगी नहीं है ।
आज कि शिक्षा केवल रोजगार प् रक् शिक्षा है, यानि वह व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार के आधुनिक व्यवसायों में रोजगार पाने कि योग्यता प्रदान करने कि कोशिश करती है, और जिसकी मानसिकता उसको भली प्रकार ग्रहण करने कि योग्यता रखती है उनको रोजगार आसानी से उपलब्ध हो जाता है, और जिन लोगों में अभी भी पारम्परिक भारतीय मूल्यों का कुछ अंश शेष है, उनको थोडा सघर्ष करना पड़ता है पर अंततः वे भी, आधुनिकता के जाल का कोई हथकंडा अपनाकर भावो को कुचलने में कामयाब हो जाते है, और अंततः आधुनिक जीवन शैली का आनन्द लेते है।
सच पूछो तो मुझे आधुनिक शिक्षा पद्धति व संस्थानो का आचरण शिक्षा कम और गुलामी का प्रशिक्षण अधिक लगता है, ऐसे लगता है कि वे इंसान नहीं रोबोट तैयार कर रहे है, जो हर कार्य में प्रवीण होगा, कम से कम समय में अधिक से अधिक उत्पादन में सहयोग करेगा, नैतिक शिक्षा इसमें शामिल नहीं है, और जो है भी वो केवल कागजों में है, साफ लगता है कि ये केवल कार्य करने हेतु गुलामो का प्रशिक्षण मात्र है।