Converted Hindus Dominating Hinduism of Modern India

 


How Converted Hindus Dominate Hinduism of Modern India?

किस प्रकार आधुनिक भारत में सनातन संस्कृति धर्मान्तरित हिन्दुओं के दुष्प्रभाव में खंडित हो रही है?

Do we need to redefine Conversion & Converted in India?


Today most of us in India and abroad consider conversion in a very narrow context because we have lost our traditional Indian insight as we have started watching things using a perception which wasn't originally part of this land which was being considered under-developed, poor since last few decades.

"Conversion must be understood as change in properties, behaviour, vision and response from what it used to be, naturally then or in past to what it has been turned into in contemporary societies."

A broad-minded sect of India has been converted to understand a narrow-minded version of Hindutva in contemporary world, each one of us today tries to define or redefine Sanatan Sanskriti as per our own vision, perception or conclusion that was developed surrounded in polluted environment, imported mindsets and western lifestyle.


Our saints meditated for decades, centuries spent their whole life from one generation to another in solitude to stay focussed on a selfless universal social aim from one generation to another, yet today faster and cheaper technologies, destructive developments have induced overconfidence to think we're more informed, accomplished, knowledgeable and smart to see facts precisely and accurately in  few hours, days or weeks.


Reciting Phrases without Reasoning Facts

धर्म की जय हो ✨ अधर्म का नाश हो 🙏 प्राणियों में सद्भावना हो 👨‍👩‍👦‍👦 विश्व का कल्याण हो 🌍 भारत अखंड हो 🇮🇳 गौ माता की जय हो ❤️ गौ हत्या बंद हो 🐂 धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जय हो 🌸 जगतगुरु शंकराचार्य महाराज की जय हो 💐  नमः पार्वती पतये हर हर महादेव 🕉
Every Sanatani Hindu function concludes with the following chants which really needs to be seriously introinspected, as our actions, lifestyle, education, profession, vision are now a days contrary to these phrases as can be understood by rising pollution, changing environment, vanishing bio-diversity, global warming etc. 

Converted Hindu mindsets have illusioned our vision to follow a path which we've practically as well as theoritically disliked. Our ignorance has permitted us to follow a path which is distroying our roots, is working contrary to our established ethos.



Our belief system seems to have been redisigned to follow modern concepts of development, society, lifestyle, relationship etc. and thus we hardly realise:-

What we do & what we ought to do?
What we eat & what we ought to eat?
What we wear & what we ought to wear?

Rising pollution, tensed & disturbed lifestyle, following shortsighted gurus, celebrating our traditional rituals to add to environment problems, underestimating our own traditional insight and powers to defend & offend.

आज भी प्रत्येक सनातनी कार्यक्रम में निम्नलिखित जयघोष का उच्चारण किया जाता है, बिना ये समझे या जाने कि:

"जय और पराजय में क्या अंतर है"

"सनातन में धर्म क्या है और अधर्म क्या"

"सद्भावना व दुर्भावना किसे कहते हैं और प्राणियों में उसकी उपस्थिति का पता कैसे लगता है"

"विश्व कल्याण की मुलभुत आवश्यकताएं क्या है व उसका क्या महत्व है"

"भारत की अखंडता में कौन से तत्व बाधक हैं"

"गौ माता की जय कैसे होगी व उसके मातृत्व को आज भी कैसे सिद्ध किया जा सकता है"



गुजरात के राज्यपाल|आचार्य देवव्रत| "हिंदू ढोंगी होते है"


धर्म का जय हो ✨ अधर्म का नाश हो 🙏 प्राणियों में सद्भावना हो 👨‍👩‍👦‍👦 विश्व का कल्याण हो 🌍 भारत अखंड हो 🇮🇳 गौ माता की जय हो ❤️ गौ हत्या बंद हो 🐂 धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जय हो 🌸 जगतगुरु शंकराचार्य महाराज की जय हो 💐 नमः पार्वती पतये हर हर महादेव 🕉





मुँह में राम बगल में छुरी लोकोक्ति को चरितार्थ करता आहार-व्यवहार-व्यापार 

आज हमारा आहार, व्यवहार व व्यापार सभी "मुहँ में राम, बगल में छुरी" को हमारी अनभिज्ञता के कारण चरितार्थ कर रहे हैं

हमारे संकल्प, जीवनशैली, धार्मिक अनुष्ठान, व्रत व त्योहार कहीं न कहीं हमारी संस्कृति, संस्कारों की मूल भावना को कुचल रहे हैं

दूषित वातावरण में जन्मे व पले-बढे बच्चों व उनके अभिभावकों से भी शुद्ध वातावरण व परिवेश की समझ की उम्मीद अनुचित होगी

वर्तमान शिक्षा नीति व शिक्षकों का एक बढ़ा वर्ग आधुनिक परिवेश से निकला है जहाँ विकास, उपलब्धि, शुद्धता की परिभाषा भारतीय लोक-संस्कृति की सहजता के अनुकूल नहीं दिखती जिस कारण हम सनातनी बन कर जिस धर्म का पालन करने को विवश है वह अधर्मता के ज्यादा निकट है क्योंकि उससे प्रकृति, पर्यावरण, जीव-जगत, पञ्च-तत्व, वनस्पतियों को वो लाभ या स्वतंत्रता नहीं मिलती जिसकी परिकल्पना "सनातन" को निर्धारित करती है, जो इन संस्कारों का आधार रहा है


पञ्च-तत्वों का जीवन-चक्र व अन्य भौतिक-जगत की प्रक्रियाओं में महत्व से अनभिज्ञता  

हम तेजी से अपने जीवन में अपनी जीवनशैली, निर्माण व व्यवसाय में पंचतत्वों को दूषित व नष्ट कर रहे हैं, जो सनातन संस्कृति को प्राणवायु प्रदान करते रहे हैं

अग्नि(सूर्य), वायु, आकाश, जल, पृथ्वी की प्रत्यक्ष उपलब्धता हर घर, व्यवसायिक प्रतिष्ठान व जीवन में धीरे-२ बाधित हो लुप्त हो रही है, प्राकृतिक स्रोतो के स्थान पर कृत्रिम माध्यमों से उनकी पूर्ति करनी की व्यवस्था का जन्म व विस्तार हो रहा है

आज घरों, मंदिरों, व्यवसायों में मिटटी नहीं मिलती, आकाश के दर्शन भी सभी स्थानों में संभव नहीं, सूर्यदेव की प्रयत्क्ष दर्शन व उनकी रश्मि का आनंद, भाग्यशाली को ही सुलभ हैं, वायुमंडल केवल वृक्ष नहीं उनके साथ सहयोग करने वाले जीव-जंतु व पशु-पक्षी भी होते हैं, जो कंक्रीट-निर्माणों में अस्तित्वहीन हो चुके हैं

यह सर्वविदित है कि पंचतत्व न केवल हर जैविक-अजैविक प्रक्रिया को पोषित करते हैं बल्कि को शुद्ध व स्वच्छ करने में भी परोक्षरूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें अपनी संस्कृति के मूल स्वरुप और प्रवृत्ति के विषय में और जागरूक होने की आवश्यकता है जो सदैव ही पंचतत्वों के संवर्धन को ही आधार बना कर चली है किन्तु आज हम तेजी से पंचतत्वों को विलुप्त करने की प्रक्रिया को भी विकास का ही अंग मान कर चल रहे हैं

भारतीय विकास की मूल प्रवृत्ति पंचतत्वों का संवर्धन या विलोपन


बिना पृथ्वी के कोई भी इलेक्ट्रिक उपकरण या सर्किट कार्य नहीं कर सकता क्योंकि उन्हें न्यूट्रल के लिए उसी पर आश्रित होना पड़ता है।

विश्व ने आज चाहे कितना भी विकास कर लिया हो किन्तु उसकी भोजन की आवश्यकता व उनसे सम्बंधित सभी उद्योग वस्तुतः मृदा से ही पोषित होते हैं, जिसे आज तेजी से विकृत कर नष्ट किया जा रहा है

अप्राकृतिक रूप से जन्में कृत्रिम पात्रों का प्रयोग 

आज हम बिना किसी शंका के अजैविक-अप्राकृतिक रूप से निर्मित कृत्रिम पात्रों का उपयोग न केवल भोजन को पकाने के लिए कर रहे हैं बल्कि गर्व से उन्हीं में परोसकर भोजन भी कर रहे हैं। विशेषकर वे जो आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन चुके हैं उनके निवास व उनके द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में सहजता से इसके दर्शन हो जाते हैं अत्याधुनिकता की दौड़ में ये कृत्रिम-पात्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, इनमें पके व परोसे पदार्थ अपनी गुणवत्ता(दोषपूर्ण) के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं 

आजकल (डिस्पोजेबल) पात्रों का प्रयोग आम है लोग दैनिक जीवन, पारिवारिक सहभोज, धार्मिक उत्सव, जन्मोत्सव व विवाहोत्सव आदि में भी सहजता से इनका उपयोग कर रहे हैं

खड़े होकर खाना व खड़े होकर भोजन पकाना 

आज से कुछ दशक पूर्व भारत में ग्रामीण आँचल में या शहरी क्षेत्रों में भी पाकशालाओं में बैठकर ही भोजन की व्यवस्था की जाती थी, भोजन परोसने के लिए भी आराम से बैठने की व्यवस्था होती थी जो सभी के लिए सहज थी




वर्तमान समय में बैठने की व्यवस्था लुप्त हो चुकी है, हाँ कहीं-२ DINING CHAIRS की व्यवस्था अवश्य दिखती है जिसके सीमित लाभ हैं और व्यवस्था भी खर्चीली है

..... इस लेख का धीमी-गति से ही सही पर निरंतर अध्यतन होता रहता है 

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