Encourage Honesty to Discourage Corruption

How is it possible to discourage corruption the way it was evident in traditional Indian Societies centuries ago when there were no disruption or distraction from contrary polluted views and half-baked theories of modern era.


Most of us today misunderstand corruption, we may be confused because our views weren't indeginiously developed in #AatmnirbharBharat but were infused artificially in a controlled environment as per the syllabus chosen for us. 



In spite of all the developments around, fundamental rights and freedom, we are actually more restricted today then we were under our limited resources in past, where, we were allowed a lot more freedom to learn from circumstances, spare enough time for our views to develop, spend more on our customs, family duties & internal-welfare then external duties & Outer Look.

Corruption is challenging & killing life everywhere which we may not realize now nor do we have traditional #innovative vision or #insight to notice it today.

In order to Discourage Corruption, we must learn to Encourage Honesty as this is the Shortest Possible Route to rediscover Health, Wealth & Happiness for survival of peaceful-coexistence culture.

Pollution & pollutants of corrupt system can only be disinfected using Purity of Honesty.

भ्रष्टाचार_युक्त_भारत से पुनः भ्रष्टाचार_मुक्त_भारत की ओर

नि:संदेह पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने हेतु उच्चस्त पर दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति का संकेत स्पष्ट दिखा है जिसने हर लक्ष्य, कार्य व योजना की कार्यकुशलता को बढाया है किन्तु दीर्घकालिक परिणामों के लिए व इसे पुन: स्थायित्व प्रदान करने के लिए और भी बहुत कुछ आवश्यक होगा



Indian Hindi Movie 1996 Hindustani हिंदुस्तानी भ्रष्टाचार विहित राष्ट्रवाद की साकार परिकल्पना

व्यवस्था बदलने के लिए उसके समकक्ष व्यवस्था को अवसर देना होगा बेईमानी को हटाने के लिए ईमानदारी को संरक्षण देना आवश्यक है अन्यथा भ्रम की ही स्तिथि बनी रहेगी

इसकी वर्तमान वस्तुस्तिथि जानने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम ईमानदारी की आत्मनिर्भरता व निर्वहन की स्तिथि को समझें। जो हम इस बात से समझ सकते हैं कि सबसे निस्वार्थ व ईमानदार भाव से पूर्ण प्रकृति, पंचतत्व किस स्तिथि में हैं

क्या जल, जलस्रोत स्वच्छ, अतिक्रमण मुक्त हैं? क्या वन्य-जीवों, सूक्ष्म-प्राणियों के जीवमंडल(biosphere) को निर्बाधित रखने की जीवनशैली व परंपरा आज भी जीवित हैं 

क्या आस-पास के प्राचीन वृक्ष, पेड़-पौधे अक्षत हैं? उनका विस्तार निर्बाध है








जिस देश में गंगाजी को माँ का दर्जा प्राप्त था व है, जहाँ गंगाजल अमृततुल्य है अगर वहीँ गंगाजी दूषित हो जाये क्योंकि वो पूर्णत: निस्वार्थ भाव से बह रही है अपनी रक्षा या संरक्षण हेतु प्रयास उसकी प्रवृत्ति नहीं रही है तो फिर भ्रष्टाचार_युक्त वातावरण को भ्रष्टाचार_मुक्त का आवरण कितने समय तक ढकने में सफल रहेगा

पञ्च तत्व हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं जो उसे व्यवस्थित करते हैं, उसका स्वस्थ निर्वहन बिना किसी स्वार्थ के सुनिश्चित करते हैं उनका अनिरुद्ध चक्र हर प्रकार से इस सृष्टि, जीवन व मानवता के संरक्षित होने का प्रमाण है किन्तु यदि ये तत्व स्वयम ही उपेक्षित, प्रदूषित, पराधीन हैं तो भ्रष्ट्राचार की उपस्तिथि या अनुपस्तिथि का और क्या प्रमाण चाहिए, सर्वप्रथम इनकी सुरक्षा, स्वतंत्रता सुनिश्चित करना आवश्यक है अन्यथा भ्रष्टाचार_से_मुक्ति हेतु ईमानदारी से कोई विकल्प शेष नहीं दिखता।  

 पञ्च-तत्वों का दूषित होना व सबकुछ देख-समझ कर अनजान बने रहना वास्तव में भारतीय समाज के धर्मान्तरित दृष्टिकोण का ही परिणाम है।

Honesty Is The Best Policy

Honesty is still the Best Policy which encourages #Corruption_Free Society, #transparency allowing a an unconditional purposeful life to flourish and actually conveys THE FACT on which our Traditional INDOMITABLE FAITH in #सत्यमेव_जयते is based.

प्रकाश स्वत: ही अन्धकार दूर कर देगा

अमावस्या की काली रात को भी एक "दीये" की उपस्तिथि से प्रकाशित किया जा सकता है।
एक ईमानदार की उपस्थिति एक बेईमान का वर्चस्व कम करती है, बेईमानों को पकड़ने/जकड़ने में उर्जा व्यर्थ करने से उत्तम है की अच्छे व सच्चे को किसी न किसी रूप में अवसर प्रदान किया जाय।

आज के प्रदूषित वातावरण व दूषित दृष्टिकोण जनित चरित्र-संकट ने भ्रष्टाचार को भी पुनर्परिभाषित कर दिया है, व्याभिचार भी व्यापार के रूप में प्रचलित हुआ है और "माँ के सौदागर" व्यवसायी। 

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।  देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥


हमारे पास चारों ओर से ऐंसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न रोकने वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।

वेदों पर आधारित सनातनी संस्कृति से उद्दृत वाक्यांशों को बिना विचारे, धारण किये आयातित विकृत मानसिकता व दृष्टिकोण युक्त होकर कहने सुनने मात्र से हम उन कल्याणकारी विचारों, अज्ञात विषयों को प्रकट नहीं कर सकते जो भोगवादी वातावरण व सुविधासंपन्न व्यवस्था में अजन्मी ही रहती है।

 

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु
विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। 
देवा नोयथा सदमिद् वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥

Although we may apperciate "आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः" but is such #insight #innovative_idea #Out_of_Box_Thinking possible while following #Modern_Lifestyle #Western_Mindset

Our modernity actually discourages & ultimately kills any such pure natural process to exist, survive or take place in our modern society because we may dislike corruption but won't take steps to encourage honesty honestly.



Will we allow such views or vision conducive environment to persist?
Honestly our #BrainWashed_Views won't allow any #Free_Flow of knowledge in abundance without scruitning them using our educated learning(filters).

अज्ञः सुखमाराधयः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।

ज्ञानलवदुर्विदग्घं ब्रह्मापि तं नरं न रज्जयति॥


 



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