How Indian Hindus Misunderstand Hinduism?

Why Modern Hindus Have Misunderstood Hinduism

Most people in Indian subcontinent as well as their neighbours share similar cultural roots which are today considered as Hinduism and narrowed down to modern definition of religion by superimposing their own perception on it.

Haridwar Uttarakhand Holy Dips by Modern Hindus who misunderstand traditional Hinduism

Today most so called Hindus misunderstand Hinduism, they actually perceive it the way it has been defined by sources that have roots lying somewhere else. Most of these Indians Today actually think that they're close to traditional Hindu lifestyle although the fact is that they're following a lifestyle which opposes Fundamental Principles of Sanatan Dharm.

This misconception can be noticed everywhere which can be listed by me later for you to judge whether its true or not.

Holy GangaJal गंगा-जल collected in Plastic Non-BioDegradable Containers in Haridwar Uttarakhand
A Nation following an eternal faith which insures protecting each and every form of elements(पंचतत्व) which participated in natural lifecycle is today facing corruption, pollution, mental health problems, lifestyle disease, climate change etc. because its no more balanced, controlled by self-sacrifice.

1. Holy Dips in Haridwar 

हरिद्वार उत्तराखंड में गंगा-जल हेतु पिछले कुछ वर्षों से प्लास्टिक के पात्र उपयोग में लाये जा रहे हैं, यहाँ आस-पास की दुकानों व पटरियों पर भी ये धड़ल्ले से बिक रहे हैं 
दैनिक-जीवन में भी अब हम मर्यादा-त्याग, जानकारी होने के बावजूद भी, उनका प्रयोग व उपयोग अतिसह्जता से कर रहे हैं व हमारी भावी-पीढ़ी भी हमारे आचरण को ग्रहण कर निर्दोष-भाव से उनको ग्रहण कर चुकी है 

ब्रह्मकुंड हरिद्वार स्तिथ हर-की-पौड़ी में आज की पीढ़ी के कुछ तत्व अज्ञानवश या असमाजिक तत्वों के प्रभाव में यहाँ बालों के लिए शैम्पू तक उपयोग कर उसका पाउच वहीँ छोड़ते देखे गए हैं 



ब्रह्मकुंड हरिद्वार स्तिथ हर-की-पौड़ी में आज की पीढ़ी के कुछ तत्व अज्ञानवश या असमाजिक तत्वों के प्रभाव में यहाँ बालों के लिए शैम्पू तक उपयोग कर उसका पाउच वहीँ छोड़ते देखे गए हैं।


हमारे साधू-संत हों या तीर्थयात्री या किसी संस्कार सनातन धर्म में नंगे-पैर बिना किसी बाहरी आवरण के तीर्थ-स्थल पर आना होता है जिसके कारण गर्मी व सर्दी में प्राकृतिक मिटटी/घास आदि पर चलना सहज होता है और वे ही इसके लिए उपयुक्त भी हैं किन्तु आज उन स्थानों पर टाइल/पत्थर आदि के उपयोग ने भले ही सफाई आसान बना दी हो और उसका रूप भी निखर गया हो किन्तु अति गर्मी-सर्दी में ये असहनीय कष्ट कारक हो जाता है।
गंगा घाटों में वैसे तो स्वच्छता व सौंदर्यीकरण में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है किन्तु पश्चिमी शिक्षानीति व दृष्टिकोण का प्रभाव यहाँ भी परिलिक्षित होता है

हमारे साधू-संत हों या तीर्थयात्री या किसी संस्कार सनातन धर्म में नंगे-पैर बिना किसी बाहरी आवरण के तीर्थ-स्थल पर आना होता है जिसके कारण गर्मी व सर्दी में प्राकृतिक मिटटी/घास आदि पर चलना सहज होता है और वे ही इसके लिए उपयुक्त भी हैं किन्तु आज उन स्थानों पर टाइल/पत्थर आदि के उपयोग ने भले ही सफाई आसान बना दी हो और उसका रूप भी निखर गया हो किन्तु अति गर्मी-सर्दी में ये असहनीय कष्ट कारक हो जाता है


 2. HAWAN SAMAGRI Used in Homa Fire Rituals यज्ञ हवन व पूजा सामग्री 

Every Hindu performs rituals like Hawan or Homa Fire Ritual occassionally or on regular basis. These rituals require items/ingredients which were traditionally available at home or were natually procured locally #VocalforLocal 

Today most of these items are available in Pooja Stores and can be ordered online too which claim to be 'All Natural & Pure' but to follow the real philosophy behind Hinduism for example, instead of using GauGrit or Desi Cow Ghee गौ-घृत we are today using cheap inferior quality products which cost low and may not be either natural or pure or naturally procured following our traditional method.

Even wood available in market is procured by forceful deforestation i.e. cutting branches without collecting those which fall down naturally or have dried up. Today this may not seem to be a blunder or a serious issue but those who understand Hinduism and its underlying beliefs will know.

वर्तमान काल के दूषित वातावरण से प्रदूषित मानसिकता का प्रभाव इस धर्मान्तरित परिवेश में चारों-ओर दिख जाता है, हमारी पूजा, पूजन सामग्री में भी ये भलीभांति परिलिक्षित होता है

सभी सामग्री अविनाशी प्लास्टिक या अन्य कृत्रिम आवरण में ही उपलब्ध होती हैं, हवन के लिए सभी पदार्थ जिनमें घी (गौ-घृत) भी निम्नस्तर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि हिन्दुओं के धर्मानुष्ठान हेतु इस प्रकार की सामग्री निर्मित हो रही है और बाजार में बहुतायत में यही उपलब्ध है

आम-पीपल की लकड़ी भी सुखी डाली से झड़ी या सूखे वृक्ष से कटी हुई नहीं होती बल्कि निर्दयता व निर्ममता से धनोपार्जन हेतु काटी गई होती हैं

ये सभी बातें मूल भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म के प्रतिकूल हैं, जिसमें "जैसा देश वैसा भेष" "जैसा अन्न, वैसा मन्न" का महत्व है और सात्विकता को सदा ही प्राथमिकता दी गई है 

3. Cook & Eat without Sitting Down

Today not only our hotel, motel, restaurants, catering service providers as well as residences have kitchen where cooking is only possible in standing position and our guests, family members, friends too eat in a standing position in parties or chairs.

Traditional Indian kitchen or cooks used to do all cooking while being seated in a comfortable position which was not only convenient but the food the cooked was also cooked in a relaxed mood.

In the era of #WomenEmpowerment we have developed a setup where a woman or man has to keep standing while they cook, back-ache is very common problem faced by modern women due to this unnatural lifestyle that they're forced to follow because this a trend of modernity.

We all know that eating position as per Ayurveda has a +ve or -ve affect on our body, health, mind and spirit yet today our social gathering, party, family function, canteens usually don't have enough sitting capacity or provision to enjoy your meal comfortably in a sitting position.

In Hinduism or Sanatan Tradition cooking & eating both are sacral rituals and aren't just a way to quench our thirst or satisfy our hunger.

4. Crush The Bottle After Use उपयोग के उपरांत कुचलने की नई प्रथा

Today we consider habit of "Use & Dispose Off", "Crush The Bottle After Use" as a good habit because of hygienic reasons.  


No doubt, re-cycling is a way out from nuisance of materialistic world. Plastic bottles can be collected and regenerated into a useful product instead of being dumped in ground for centuries to decompose naturally.


How 1.5 Million Plastic Bottles Are Turned Into Clothing Every Day

किन्तु क्या यह, "उपयोग के उपरांत कुचलने" का विचार भारतीय सनातन की उपज है या उसके सिद्धांतों के अनुकूल क्या हमारे मन-मस्तिष्क पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा या नकरात्मक, हमारे बच्चे/युवा पीढ़ी इस आचरण को आत्मसात करने के उपरांत, किस प्रकार के व्यवहार परिवर्तन को झेलेगी

श्रृष्टि में निर्माण, पालन व विध्वंश हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश के कार्यक्षेत्र हैं, प्रकृति का निर्माण व नष्ट होना एक शास्वत सत्य है किन्तु उसे स्वार्थसिद्धि का दृष्टान्त देना, उसे स्वयमेव अपनी आवश्यकता की पूर्ति के उपरांत निसंकोच नष्ट करने का दृष्टिकोण क्या भारतीय संस्कृति का अंगीकरण है या एक धर्मान्तरित विचारधारा को सहजता के भाव से स्वीकारना और अपनाना?

वैसे भी आधुनिक विज्ञान द्वारा इस पुनर्निर्माण की प्रक्रिया की जटिलता को भी हमें समझना चाहिए, इसमें लगने वाली उर्जा, प्रदुषण व दूषित उत्सर्जन, उपजाऊ भूमि/मृदा को अपदस्त कर उसके उसपर इस हेतु उद्योग इकाई का निर्माण और उनसे उत्पन्न दुष्परिणामों से निपटने के लिए एक नई योजना! 

4. Underestimating Power of Our Philosophical Thoughts & Culture

Converted mindsets have today reduced our immunity & stamina physically as well as mentally, in spite of being a part of mainstream Indian culture, our faith has declined because we are actually no more part of a pure unpolluted environment conducive of natural processess. 

We are not allowing existence of biodiversity, survival of tiny-biospheres in and around our residence, society or office building. Decision to allow growth or survival of humus or soil, plants, insects or aboriginal animals depends on us, they have no Right to Survive.

This is nothing but either ignoring our own philosophical or cultural cult which isn't based on "Survival of The Fittest", but "Survival of Each & Every Form of Nature & Life". 

How Indian Hindus Misunderstand Hinduism? ...... to be continued....  

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