Indian Poverty Illusion or Fact
गरीब-भारत या गरीबों का देश भारत : वास्तविकता या दृष्टिदोष
प्रणाम,
मैं आपका ध्यान निम्न दो बातों पर चाहूँगा, जो एक दृष्टिकोण/व्यक्तिगत
सोच भी हो सकती हैं:-
१.
कि ये सोच कि भारत एक गरीब देश हैं या गरीबों का देश है, सही नहीं है। ये बात वास्तविकता से परे है, मेरी नज़र में ये स्प
ष्टतः एक दृष्टि दोष है, जो स्वदेशी नहीं है, जिसे भारतीय दर्शन, संस्कृति और परम्पराओं का ज्ञान नहीं हैं।
ष्टतः एक दृष्टि दोष है, जो स्वदेशी नहीं है, जिसे भारतीय दर्शन, संस्कृति और परम्पराओं का ज्ञान नहीं हैं।
शुद्ध, सौम्य और साधारण जीवन भारत में बड़े और सिद्ध पुरुषों/मनीषियों की पहचान हैं, भारत में आवरण और आडम्बर को सदा ही अति महत्त्व नहीं दिया गया, धन कभी भी शक्ति का प्रतीक नहीं समझा गया।
मुझे ये सुनकर बड़ा दुःख होता हैं, खासकर तब जब कोई भारतीय भी अपने ही देश को नासमझी में गरीब समझता है। अपने ही पैतृक स्थान को तुच्छ कहता है क्योंकि वह आधुनिकता के भोगवादी परिपेक्ष का अनुसरण नहीं करती न उसपर खरी ही उतरती है।
हमारी परम्परा और स्वाभाव में उन आत्मसुख की चीजो का उतना महत्त्व नहीं है, जिनके लिए हैं वो उसे अपनाएं पर ये कहकर की हम गरीब है इसलिए उनके उत्पाद या जीवनशैली को नहीं अपना सकते गलत हैं, जिसे हम समझते हैं।
Indian society before the British, Truth vs Myth अंग्रेजों से पहले कैसा था भारत? #IndianHistory
२.
हिंदुस्तान या भारत में बेरोज़गारी न तो
उतनी थी या है, न वैसी थी या है जैसी प्रचार की जा रही है, ये समस्या उन शहरों या
गांवों की हैं जो अपनी पारंपरिक काम को किसी भी वजह से छोड़कर टीवी/फिल्मों में
दिखाई जा रही आयातित जीवनशैली/कार्य को करना ही सही मायने में रोजगार समझते हैं।
अगर हम इसी तरह से विकास के नाम पर अपने मूल को छोड़ते रहेंगे, गाय की पूजा तो करेंगे पर स्वयं पालेंगे नहीं, बेदर्दी से सिंचित खेतों पर मकान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान बना, धरती माता की पूजा करेंगे, मिटटी को जिससे आज भी सारा अन्न, जल निकलता है, उसी को नफरत से देखेंगे, उससे बच्चों को दूर रखेंगे, तो जाहिर हैं हम गलत हैं और आगे कष्ट भोग सकते हैं।
अगर हम इसी तरह से विकास के नाम पर अपने मूल को छोड़ते रहेंगे, गाय की पूजा तो करेंगे पर स्वयं पालेंगे नहीं, बेदर्दी से सिंचित खेतों पर मकान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान बना, धरती माता की पूजा करेंगे, मिटटी को जिससे आज भी सारा अन्न, जल निकलता है, उसी को नफरत से देखेंगे, उससे बच्चों को दूर रखेंगे, तो जाहिर हैं हम गलत हैं और आगे कष्ट भोग सकते हैं।
आज देश में सब जगह लोग अपने मूल/पारंपरिक जीवन/व्यवसाय को छोड़ रहे हैं, चाहे उसमे कोई वास्तविक समस्या न हो। क्योंकि वह उनको आसानी से मिल जाता हैं, उनको कभी ये सोचना नहीं पड़ता की बड़े होकर क्या करेंगे, काम उनको आता हैं क्योंकि वो पुश्तैनी है पर आज सभी उसको छोड़ कर बेरोजगार बने बैठे हैं, अपने सर्टिफिकेट/डिग्री के हिसाब से काम चाहते हैं, पुश्तैनी काम उने छोटा लगता हैं। जिनकी दो पीड़ियों ने पारंपरिक काम छोड़ दिया था वो अब वापिस नहीं लौट सकते क्योंकि सारा ज्ञान और मूल कारोबार ख़तम हो चूका है।
ये जरूर हैं की जिन क्षेत्रों में पारंपरिक गाँव, खेत, जमीने ख़तम हो गई हैं, वो वास्तव में बेरोजगार हैं, क्योंकि उन्होंने कुछ धरती छोड़ी ही नहीं, जो कम से कम और कुछ नहीं तो जीवन तो चला ही देगी, किसी न किसी प्रकार से।
आज भी अगर भारत में मूल व्यवसाय करने के लिए युवाओं को प्रेरित किया जाय, उनको प्राकृतिक तरीके से अपने मूल स्थान पर या जहाँ संभव हो पर जिस प्रकार भी हो सके उसको करने और सफलतापूर्वक करने के लिए प्रोहत्साहित किया जाय तो भारत में रोजगार की समस्या काफी कुछ सुधरेंगी।
धन्यवाद सहित
#आत्मनिर्भर_भारत #SelfReliantIndia #AatmNirbharBharat
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