बढती शून्य श्रंखला ₹ के संचयन की प्रवृत्ति Rising Series of Zeros
Contemporary world is today more aware on balancing its efforts towards peaceful co-existence, is keen to adopt politics with responsibility because in spite of rising temperature due to global warming, shrinking snow lines, increasing pollutants and pollution, political differences, religious fundamentalism, a new phenomenon of leadership has evolved locally and globally.
Imitating great leaders, following their style is not new but if series of zeros isn't preceded by at least One '1' i.e. A Natural Number then its a worthless series and nothing more then, representation of non-existence i.e. zero '0' only.
Today a number of imitations lack a preceding natural number and only have a long series of zeros to demonstrate their large following.
Obviously, if '1' One is followed by such long series of '0' Zeros then it is meaningful, natural number.But when this '1' is neither preceeding not even seen following then the series is questionable, doubtful. Equivalent to Zero '0' i.e. sunya.
Today our mainstream leaders who can actually be compared to Natural Numbers which denote existence of a fact, a universal truth, a universally existing entity.
शून्य श्रंखला यानी "आकाशमंडल में टिमटिमाते तारों का समूह" या एक लम्बी ००००००००००००००००००००० की पंक्ति जिसकी लम्बाई व चौड़ाई से कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि उसमें एक भी ऐसा अंक नहीं जो वास्तविकता के धरातल पर अस्तित्व में हो या आ सकने की गुणवत्ता उपलब्ध हो।
वर्तमान भारत में जब भी कहीं '१" मिलता है तो उसके पीछे ये शून्य श्रृंखला जुडकर अपना अस्तित्व साकार करने का भरसक प्रयास करती है।₹१०००००००/-
किन्तु अचम्भा तब लगता है जब '१' की अनुपस्थिति में भी अनेकों शून्यों की श्रृंखलाएं दृष्टिगोचर होने लगती हैं जो वास्तव में तो अस्तित्वहीन हैं किन्तु '०' के आधार पर अस्तित्व में दिखने का प्रयास करती हैं। ₹०००००००/-
अयोग्यता को योग्यता के समकक्ष खड़ा करना, उक्त कहावत का निरूपण लगता है जिसके अनुसार, "कौवा चला हंस की चाल"।
इस प्रकार के बहुरूपियों की उपस्थिति को समझना हर किसी की समझ की बात नहीं खासकर उनके जो अपने व्यवसाय या अन्य क्रियाकलापों में केवल धन उपार्जन हेतु अत्यधिक व्यस्त रहते हैं। भविष्य में ये बगुलाभक्त क्या गुल खिलाते हैं कोई नहीं जान सकता, किन्तु ये तो हम भी समझते हैं कि नकली कभी भी असली नहीं होता न ही उसकी उपयोगिता असली के समकक्ष हो सकती है।
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