गाय मारकर जूता दान

 

जब हमारी कथनी और करनी में असमान्य अंतर परिलक्षित होगा, हमारे दायित्व और धर्म मूल उद्देश्य से भटके हुए होंगे और जब हम इस बात को समझने लगेंगे तो यह कहावत, "गाय मारकर जूता दान" हमें उचित भी लगेगी और समझ भी आ जाएगी

हमारी कथनी और करनी, आदर्श और व्यवहार में आकाश-पातळ के समान अंतर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है और ऐसा एक स्थान या सीमित-परिधि में नहीं हो रहा बल्कि यह एक व्यापक परिदृश्य है। हम दान-धर्म भी निभा रहे हैं किन्तु हम क्यों पाप के भागी बन रहे हैं या दैनिक-जीवन में उसके प्रतिफल कहे जाने वाले कष्ट को भोग रहे हैं इस पर एक सशंकित समाज बन चुके हैं

वर्तमान काल-खंड में 'गाय' गौ जिसका हमारी पारम्परिक मान्यताओं के अनुसार एकमात्र तात्पर्य स्वदेशी नश्ल की देशी-गायों से हैं जिन्हें जिन्हें भगवन श्रीकृष्ण वन के गौचरों में चराते थे वर्तमान काल-खण्ड में जिनका धार्मिक या सामाजिक महत्व उस स्तर पर नहीं है जिस स्तर पर कुछ दशको पूर्व था या ५००-१००० वर्ष पूर्व रहा होगा

जब निः स्वार्थ भाव से  "बहुजन हिताय  बहुजन सुखाय"  संस्कृति का पालन करने वाले  पंचतत्व स्रोत व जीवनशैली प्रदूषित हो विलुप्ति की ओर अग्रसर है।  आम जीव में  अनाधिकृत ईमानदार प्रयास कैसे अछूते रह सकते हैं?  #Corruption #चरित्र_संकट #प्रदूषण

कुछ बुद्धिजीवी कालान्तर में हुए युग-परिवर्तन को आधार बना इस प्रकार के विचार व व्यवहार का अनुमोदन करते हैं और इसे विकास ओर उस ओर देखने और बढ्ने को पिछड़ापन या अतीत की घटना से ज्यादा महत्व नहीं देते। उन्हें अपनाने या धारण करने के विषय पर चर्चा या चिंता उनका विषय नहीं है

Receding Water Table & Droughts Vs Floods

Receding Water Table & Droughts Vs Floods

On one hand water table is receding everywhere, summers are getting hotter and hotter and on another a few months later we have over flowing water, floods in and around the same places.

What is this? Who's responsible?

Should we follow the imported narrative & mindset and start blaming #global_warming #climate_change for this mess.

पर उपदेश कुशल बहुतेरे 

प्रकृति, पर्यावरण को किसी भी प्रकार से दोष देना क्या भारतीय संस्कृति रही है?



हमारे पूर्वजों ने सदा ही आत्मचिंतन को वरीयता दी है, सदा ही इसमें अपनी भूल ढूँढने व स्वीकारने को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे, उन कारणों को जानने के लिए एकांतवास का सहारा लेते थे जिसके लिए, सामान्य जीवनशैली का त्याग कर वनों में निवास का निर्णय एक सामाजिक रूप से स्वीकार्य परम्परा थी, जो समाधान प्राप्त होने पर्यन्त चलती थी 



Or 

Follow our traditional insight and view things from our traditional & cultural stand point and introinspect our own activities & behaviour to get more clarity.

क्या कभी अत्यधिक गर्मी, जल की कमी, सुखा की समस्या से झूझना तो कभी अतिवृष्टि, जल भराव, बाढ़ का समाधान ढूँढना हमें आपने कुकृत्यों को समझाने में असमर्थ हैं?

हमारी इन गतिविधियों से जीव-जन्तुं, जैविक जगत जिसे हम सद्भाव, शांतिपूर्ण -सहअस्तित्व से पूर्व में परिभाषित करते रहे हैं, आज कष्ट सहकर नष्ट नहीं हो रहा है। क्या हम उनके मूल अधिकारों का हनन नहीं कर रहे हैं? क्या हमारा आचरण हमारी अपनी पारंपरिक मान्यताओं के प्रतिकूल नहीं है?



Developments Disturbing Processing of Natural Water Cycle

Today nature, natural greenry, mud as well as ponds, water pools, that were common in our villages as well as suburban localities are either encroached or lost.

Our tradition and culture is based on customs which require these natural sources of bio-diversity, life.

Covering every portion of our society/building, residence, neighbourhood, roads, streets, is actually disturbing this natural processing involved to complete water cycle in which every nook or corner used to be condusive or cooperative in past. 

When we allow nature to flourish we allow bio-diversity i.e. life to exist, living beings to survive.




Contradictory trends due to human negilegence and misunderstanding nature of nature is now being 100% blamed as #ClimateCrisis without a bit of introinspection.


 


Our tradition & culture has always supported universal eternity, allowed bio-diversity to exists, flora and fauna to flourish, which can be noticed in our local customs and traditions too.


Unfortunately today every misery, calamity is an opportunity for short-sighted, unminding individuals and businesses, who are involved in redevelopment work as an official or contractor or middle-man.

Covering every nook-corner of our streets, roads, residence with tiles, concrete is obstructing the organic cycle of nature, which allows rain water to permeate through ground, allows microbial activities.  

I don't know whether corruption could be the right word which can be used or introduced for this blind phenomenon everywhere.



Receding Water Table & Droughts Vs Floods

Rising Series of Zeros बढती शून्य श्रंखला के संचयन की प्रवृत्ति

बढती शून्य श्रंखला ₹ के संचयन की प्रवृत्ति Rising Series of Zeros

Contemporary world is today more aware on balancing its efforts towards peaceful co-existence, is keen to adopt politics with responsibility because in spite of rising temperature due to global warming, shrinking snow lines, increasing pollutants and pollution, political differences, religious fundamentalism, a new phenomenon of leadership has evolved locally and globally.



Imitating great leaders, following their style is not new but if series of zeros isn't preceded by at least One '1' i.e. A Natural Number then its a worthless series and nothing more then, representation of non-existence i.e. zero '0' only.

Today a number of imitations lack a preceding natural number and only have a long series of zeros to demonstrate their large following.

Obviously, if '1' One is followed by such long series of '0' Zeros then it is meaningful, natural number.

But when this '1' is neither preceeding not even seen following then the series is questionable, doubtful. Equivalent to Zero '0' i.e. sunya.

Today our mainstream leaders who can actually be compared to Natural Numbers which denote existence of a fact, a universal truth, a universally existing entity.



शून्य श्रंखला यानी "आकाशमंडल में टिमटिमाते तारों का समूह" या एक लम्बी ००००००००००००००००००००० की पंक्ति जिसकी लम्बाई व चौड़ाई से कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि उसमें एक भी ऐसा अंक नहीं जो वास्तविकता के धरातल पर अस्तित्व में हो या आ सकने की गुणवत्ता उपलब्ध हो

वर्तमान भारत में जब भी कहीं '१" मिलता है तो उसके पीछे ये शून्य श्रृंखला जुडकर अपना अस्तित्व साकार करने का भरसक प्रयास करती है₹१०००००००/-


किन्तु अचम्भा तब लगता है जब '१' की अनुपस्थिति में भी अनेकों शून्यों की श्रृंखलाएं दृष्टिगोचर होने लगती हैं जो वास्तव में तो अस्तित्वहीन हैं किन्तु '०' के आधार पर अस्तित्व में दिखने का प्रयास करती हैं। ₹०००००००/-

अयोग्यता को योग्यता के समकक्ष खड़ा करना, उक्त कहावत का निरूपण लगता है जिसके अनुसार, "कौवा चला हंस की चाल"

इस प्रकार के बहुरूपियों की उपस्थिति को समझना हर किसी की समझ की बात नहीं खासकर उनके जो अपने व्यवसाय या अन्य क्रियाकलापों में केवल धन उपार्जन हेतु अत्यधिक व्यस्त रहते हैं भविष्य में ये बगुलाभक्त क्या गुल खिलाते हैं कोई नहीं जान सकता, किन्तु ये तो हम भी समझते हैं कि नकली कभी भी असली नहीं होता न ही उसकी उपयोगिता असली के समकक्ष हो सकती है 

Guru Purnima गुरु पूर्णिमा குரு பூர்ணிமா గురుపౌర్ణమి ഗുരു പൂർണിമ ગુરુ પૂર્ણિમા Enlightening

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।


Guru Purnima गुरु पूर्णिमा குரு பூர்ணிமா గురుపౌర్ణమి ഗുരു പൂർണിമ ગુરુ પૂર્ણિમા

Guru Poornima-गुरु पूर्णिमा as per Sanatan tradition is an occassion to remember our spiritual guru, his/her teachings as applicable for contemporary world in modern civilization in our lives & introinspecting our own lifestyle, occupation, behaviour in that framework.
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

Guru in sanskrit means a mentor, expert who dispels darkness in every sphere of our life by simplifying complexity in a very comprehensive manner with tips which are convenient to follow and adopt.

Moon is related to mind, emotion or pshyche, mother and brighter/full moon means illuminating impact on our mind and pshyche.

Person born on Purnima i.e. Full Moon are known to be spiritually awakened.

ॐ असतो मा सद्गमय। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां  विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय  सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

We often get distracted from our path, our goals and often need to be recorrected or retold to return to our original path. Guru Purnima गुरु पूर्णिमा குரு பூர்ணிமா గురుపౌర్ణమి ഗുരു പൂർണിമ ગુરુ પૂર્ણિમા is a occassion to recollect & reconsider all teachings of our Guru Ji and return to the path they taught us to follow to maintain a balanced approach in life, drive optimum all round success in life.

प्रकाश स्वत: ही अन्धकार दूर कर देगा

Today our limitations, problems, tensions including social, professional issues as well as issues at community level like corruption, pollution, health care can all be related to darkness i.e. ignorance about probable solutions or root-cause of the problem. 


Traditional Indian Insight

Lack of honesty, clearity is actually illusioning 'fact based concepts' on which our tradition, culture was based since iternity as you only fall off, get extinct when your belief-system is based on facts which are fictious and not based on universal truth.

Āshāda Ekādashi is a day synonymous with Pānduranga Vittalā. It is the day devotees sing the names of the Lord, while walking to the temple of Pandharpur. Madrasana came together with Vinay Varanasi and Sivasri Skandaprasad to recreate this walk to the temple of Krishna, in Bangalore! On the morning of āshāda ekādashi, ( July 10th, 2022) Vinay and Sivasri were joined by Jaidev Haridos and Chandrashekhar , and they shared stories of Nāmdev, sung abhangs and compositions as they walked through the temples of Malleswaram. They were joined by several enthusiastic participants, who sang along and keenly listened to the stories of Nāmdev, a Marathi saint. This event was a precursor to a deeper exploration of Nāmdev's journey of bhakti. 

 
सद्गमय हमें   अपने स्वयं के   अज्ञान को दूर करने के लिए   प्रोत्साहित करता है   जो हमारी दृष्टि को    अवरुद्ध करता है।

Converted Hindus Dominating Hinduism of Modern India

 


How Converted Hindus Dominate Hinduism of Modern India?

किस प्रकार आधुनिक भारत में सनातन संस्कृति धर्मान्तरित हिन्दुओं के दुष्प्रभाव में खंडित हो रही है?

Do we need to redefine Conversion & Converted in India?


Today most of us in India and abroad consider conversion in a very narrow context because we have lost our traditional Indian insight as we have started watching things using a perception which wasn't originally part of this land which was being considered under-developed, poor since last few decades.

"Conversion must be understood as change in properties, behaviour, vision and response from what it used to be, naturally then or in past to what it has been turned into in contemporary societies."

A broad-minded sect of India has been converted to understand a narrow-minded version of Hindutva in contemporary world, each one of us today tries to define or redefine Sanatan Sanskriti as per our own vision, perception or conclusion that was developed surrounded in polluted environment, imported mindsets and western lifestyle.


Our saints meditated for decades, centuries spent their whole life from one generation to another in solitude to stay focussed on a selfless universal social aim from one generation to another, yet today faster and cheaper technologies, destructive developments have induced overconfidence to think we're more informed, accomplished, knowledgeable and smart to see facts precisely and accurately in  few hours, days or weeks.


Reciting Phrases without Reasoning Facts

धर्म की जय हो ✨ अधर्म का नाश हो 🙏 प्राणियों में सद्भावना हो 👨‍👩‍👦‍👦 विश्व का कल्याण हो 🌍 भारत अखंड हो 🇮🇳 गौ माता की जय हो ❤️ गौ हत्या बंद हो 🐂 धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जय हो 🌸 जगतगुरु शंकराचार्य महाराज की जय हो 💐  नमः पार्वती पतये हर हर महादेव 🕉
Every Sanatani Hindu function concludes with the following chants which really needs to be seriously introinspected, as our actions, lifestyle, education, profession, vision are now a days contrary to these phrases as can be understood by rising pollution, changing environment, vanishing bio-diversity, global warming etc. 

Converted Hindu mindsets have illusioned our vision to follow a path which we've practically as well as theoritically disliked. Our ignorance has permitted us to follow a path which is distroying our roots, is working contrary to our established ethos.



Our belief system seems to have been redisigned to follow modern concepts of development, society, lifestyle, relationship etc. and thus we hardly realise:-

What we do & what we ought to do?
What we eat & what we ought to eat?
What we wear & what we ought to wear?

Rising pollution, tensed & disturbed lifestyle, following shortsighted gurus, celebrating our traditional rituals to add to environment problems, underestimating our own traditional insight and powers to defend & offend.

आज भी प्रत्येक सनातनी कार्यक्रम में निम्नलिखित जयघोष का उच्चारण किया जाता है, बिना ये समझे या जाने कि:

"जय और पराजय में क्या अंतर है"

"सनातन में धर्म क्या है और अधर्म क्या"

"सद्भावना व दुर्भावना किसे कहते हैं और प्राणियों में उसकी उपस्थिति का पता कैसे लगता है"

"विश्व कल्याण की मुलभुत आवश्यकताएं क्या है व उसका क्या महत्व है"

"भारत की अखंडता में कौन से तत्व बाधक हैं"

"गौ माता की जय कैसे होगी व उसके मातृत्व को आज भी कैसे सिद्ध किया जा सकता है"



गुजरात के राज्यपाल|आचार्य देवव्रत| "हिंदू ढोंगी होते है"


धर्म का जय हो ✨ अधर्म का नाश हो 🙏 प्राणियों में सद्भावना हो 👨‍👩‍👦‍👦 विश्व का कल्याण हो 🌍 भारत अखंड हो 🇮🇳 गौ माता की जय हो ❤️ गौ हत्या बंद हो 🐂 धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जय हो 🌸 जगतगुरु शंकराचार्य महाराज की जय हो 💐 नमः पार्वती पतये हर हर महादेव 🕉





मुँह में राम बगल में छुरी लोकोक्ति को चरितार्थ करता आहार-व्यवहार-व्यापार 

आज हमारा आहार, व्यवहार व व्यापार सभी "मुहँ में राम, बगल में छुरी" को हमारी अनभिज्ञता के कारण चरितार्थ कर रहे हैं

हमारे संकल्प, जीवनशैली, धार्मिक अनुष्ठान, व्रत व त्योहार कहीं न कहीं हमारी संस्कृति, संस्कारों की मूल भावना को कुचल रहे हैं

दूषित वातावरण में जन्मे व पले-बढे बच्चों व उनके अभिभावकों से भी शुद्ध वातावरण व परिवेश की समझ की उम्मीद अनुचित होगी

वर्तमान शिक्षा नीति व शिक्षकों का एक बढ़ा वर्ग आधुनिक परिवेश से निकला है जहाँ विकास, उपलब्धि, शुद्धता की परिभाषा भारतीय लोक-संस्कृति की सहजता के अनुकूल नहीं दिखती जिस कारण हम सनातनी बन कर जिस धर्म का पालन करने को विवश है वह अधर्मता के ज्यादा निकट है क्योंकि उससे प्रकृति, पर्यावरण, जीव-जगत, पञ्च-तत्व, वनस्पतियों को वो लाभ या स्वतंत्रता नहीं मिलती जिसकी परिकल्पना "सनातन" को निर्धारित करती है, जो इन संस्कारों का आधार रहा है


पञ्च-तत्वों का जीवन-चक्र व अन्य भौतिक-जगत की प्रक्रियाओं में महत्व से अनभिज्ञता  

हम तेजी से अपने जीवन में अपनी जीवनशैली, निर्माण व व्यवसाय में पंचतत्वों को दूषित व नष्ट कर रहे हैं, जो सनातन संस्कृति को प्राणवायु प्रदान करते रहे हैं

अग्नि(सूर्य), वायु, आकाश, जल, पृथ्वी की प्रत्यक्ष उपलब्धता हर घर, व्यवसायिक प्रतिष्ठान व जीवन में धीरे-२ बाधित हो लुप्त हो रही है, प्राकृतिक स्रोतो के स्थान पर कृत्रिम माध्यमों से उनकी पूर्ति करनी की व्यवस्था का जन्म व विस्तार हो रहा है

आज घरों, मंदिरों, व्यवसायों में मिटटी नहीं मिलती, आकाश के दर्शन भी सभी स्थानों में संभव नहीं, सूर्यदेव की प्रयत्क्ष दर्शन व उनकी रश्मि का आनंद, भाग्यशाली को ही सुलभ हैं, वायुमंडल केवल वृक्ष नहीं उनके साथ सहयोग करने वाले जीव-जंतु व पशु-पक्षी भी होते हैं, जो कंक्रीट-निर्माणों में अस्तित्वहीन हो चुके हैं

यह सर्वविदित है कि पंचतत्व न केवल हर जैविक-अजैविक प्रक्रिया को पोषित करते हैं बल्कि को शुद्ध व स्वच्छ करने में भी परोक्षरूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें अपनी संस्कृति के मूल स्वरुप और प्रवृत्ति के विषय में और जागरूक होने की आवश्यकता है जो सदैव ही पंचतत्वों के संवर्धन को ही आधार बना कर चली है किन्तु आज हम तेजी से पंचतत्वों को विलुप्त करने की प्रक्रिया को भी विकास का ही अंग मान कर चल रहे हैं

भारतीय विकास की मूल प्रवृत्ति पंचतत्वों का संवर्धन या विलोपन


बिना पृथ्वी के कोई भी इलेक्ट्रिक उपकरण या सर्किट कार्य नहीं कर सकता क्योंकि उन्हें न्यूट्रल के लिए उसी पर आश्रित होना पड़ता है।

विश्व ने आज चाहे कितना भी विकास कर लिया हो किन्तु उसकी भोजन की आवश्यकता व उनसे सम्बंधित सभी उद्योग वस्तुतः मृदा से ही पोषित होते हैं, जिसे आज तेजी से विकृत कर नष्ट किया जा रहा है

अप्राकृतिक रूप से जन्में कृत्रिम पात्रों का प्रयोग 

आज हम बिना किसी शंका के अजैविक-अप्राकृतिक रूप से निर्मित कृत्रिम पात्रों का उपयोग न केवल भोजन को पकाने के लिए कर रहे हैं बल्कि गर्व से उन्हीं में परोसकर भोजन भी कर रहे हैं। विशेषकर वे जो आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन चुके हैं उनके निवास व उनके द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में सहजता से इसके दर्शन हो जाते हैं अत्याधुनिकता की दौड़ में ये कृत्रिम-पात्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, इनमें पके व परोसे पदार्थ अपनी गुणवत्ता(दोषपूर्ण) के लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं 

आजकल (डिस्पोजेबल) पात्रों का प्रयोग आम है लोग दैनिक जीवन, पारिवारिक सहभोज, धार्मिक उत्सव, जन्मोत्सव व विवाहोत्सव आदि में भी सहजता से इनका उपयोग कर रहे हैं

खड़े होकर खाना व खड़े होकर भोजन पकाना 

आज से कुछ दशक पूर्व भारत में ग्रामीण आँचल में या शहरी क्षेत्रों में भी पाकशालाओं में बैठकर ही भोजन की व्यवस्था की जाती थी, भोजन परोसने के लिए भी आराम से बैठने की व्यवस्था होती थी जो सभी के लिए सहज थी




वर्तमान समय में बैठने की व्यवस्था लुप्त हो चुकी है, हाँ कहीं-२ DINING CHAIRS की व्यवस्था अवश्य दिखती है जिसके सीमित लाभ हैं और व्यवस्था भी खर्चीली है

..... इस लेख का धीमी-गति से ही सही पर निरंतर अध्यतन होता रहता है 

Reinstating India from Neo India

Develop New Smart India with Clear Motive of Peaceful Coexistence with Natural Surroundings

Our Indian tradition & culture has always advocated ‘Peaceful Coexistence’ in every form with surrounding nature. natural surroundings.


Our lifestyle, social structure & developments have always supported and taught to practice ‘सर्वधर्म-समभाव’, which in a narrow minded version can mean ‘Religious Tolerance’ but actually meant to convey a wider universal approach to coexist with duty, nature, lifestyle, necessities, habits of living & non living beings in every natural form in surrounding areas.

Our festivals, developments, creations, celebrations & social life were designed implicitly in a holistic way to improve & enhance welfare of our environment, surrounding nature, plants & animals which ensured ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।’ in its true sense, irrespective of anything else derived out of selfish motives or intellectual limitations which was a Balanced Approach to Healthy Living & Enjoying Every Aspect of Life.

In last few decades things have changed a lot due to Change In Perception which seems to be CONTRARY to Our Traditional Approach and Vision to progress & work for development without compromising on our core value system, which has resulted in a number of social/political/environmental problems which is likely to pose a serious threat to our survival & existence on this planet.

Today we have Divided Our Core Value System into Independent faculties & disciples which seems to have Disturbed its Harmony and Interdependent Interdisciplinary Result Oriented Approach, resulting in Contradiction in Efforts & Approach. Our political division of power and ministries at highest level in Republic of India seems to represent this, where working of one influences, obstructs, interferes in working of others.  We as a nation have seen a continuous degradation & decline on various parameters in spite of various ongoing schemes, plans & projects under various ministries, departments, agencies & NGOs at different levels in India.

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु 
विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। 
देवा नोयथा सदमिद् वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥

In short one team is working on a solution while hurting interests/creating problem for another. We are approaching a problem from different counterproductive levels i.e.,

1.       On one hand we are working to develop economy, industries and lifestyle on other we are working to tackle increasing pollution, garbage (solid waste management) & social problems.
2.       We have different units to develop road & rail network while another for forest & climate change.
3.       We have ministry of housing & urban affairs to increase housing & improve living condition while another for forest & climate change as well as NGT and Ministry of Agriculture and Farmers Welfare. Ministry of Culture
4.       We have separate ministry to develop tourism and to preserve our culture.
5.       We have Ministry of Women and Child Development as well as Ministry of Social Justice and Empowerment & Ministry of Health and Family Welfare.
6.       We have Ministry of Human Resource Development as well as Ministry of Rural Development, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare..



Solution 


1.       If possible we can adopt an Integrated Object Oriented Approach instead of Independent Modular Approach for each, which means some common characteristic having our traditional universal appeal should be adopted & adapted.
2.       Our Core Value System must be Protected at any cost, using a positive approach to save our tradition, culture, environment, nature, flora &fauna on top priority basis where possible.
3.       Our social, environmental, regional traditional approach & composition must be insured including variations in plants & animals i.e. local cultural heritage, delicacies, crops, produce, society.
4.       Our development works like smart cities, new India should use benchmarks to insure that the quality of ‘पञ्च तत्वFive Great Elements” i.e., earth, water, air, space are not degraded but upgraded with progress of project/schemes.
5.       Villages the strongest pillar of Indian tradition & culture, living example of peaceful coexistence, ‘अतिथिदेवो भव’ are vanishing & need immediate attention.
6.       Traditional Indian family system has a solution to many modern social problems as well as key to our tradition & culture of peaceful coexistence, needs promotion and protection.
7.       Our buildings, houses, colonies must reflect our vision of peaceful coexistence within family, tradition/culture, society/environment & must be designed with that in mind.

Contradiction in vision & goals between ministries/departments should not dilute results & resources, competing & dragging each other.


Encourage Honesty to Discourage Corruption

How is it possible to discourage corruption the way it was evident in traditional Indian Societies centuries ago when there were no disruption or distraction from contrary polluted views and half-baked theories of modern era.


Most of us today misunderstand corruption, we may be confused because our views weren't indeginiously developed in #AatmnirbharBharat but were infused artificially in a controlled environment as per the syllabus chosen for us. 



In spite of all the developments around, fundamental rights and freedom, we are actually more restricted today then we were under our limited resources in past, where, we were allowed a lot more freedom to learn from circumstances, spare enough time for our views to develop, spend more on our customs, family duties & internal-welfare then external duties & Outer Look.

Corruption is challenging & killing life everywhere which we may not realize now nor do we have traditional #innovative vision or #insight to notice it today.

In order to Discourage Corruption, we must learn to Encourage Honesty as this is the Shortest Possible Route to rediscover Health, Wealth & Happiness for survival of peaceful-coexistence culture.

Pollution & pollutants of corrupt system can only be disinfected using Purity of Honesty.

भ्रष्टाचार_युक्त_भारत से पुनः भ्रष्टाचार_मुक्त_भारत की ओर

नि:संदेह पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने हेतु उच्चस्त पर दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति का संकेत स्पष्ट दिखा है जिसने हर लक्ष्य, कार्य व योजना की कार्यकुशलता को बढाया है किन्तु दीर्घकालिक परिणामों के लिए व इसे पुन: स्थायित्व प्रदान करने के लिए और भी बहुत कुछ आवश्यक होगा



Indian Hindi Movie 1996 Hindustani हिंदुस्तानी भ्रष्टाचार विहित राष्ट्रवाद की साकार परिकल्पना

व्यवस्था बदलने के लिए उसके समकक्ष व्यवस्था को अवसर देना होगा बेईमानी को हटाने के लिए ईमानदारी को संरक्षण देना आवश्यक है अन्यथा भ्रम की ही स्तिथि बनी रहेगी

इसकी वर्तमान वस्तुस्तिथि जानने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम ईमानदारी की आत्मनिर्भरता व निर्वहन की स्तिथि को समझें। जो हम इस बात से समझ सकते हैं कि सबसे निस्वार्थ व ईमानदार भाव से पूर्ण प्रकृति, पंचतत्व किस स्तिथि में हैं

क्या जल, जलस्रोत स्वच्छ, अतिक्रमण मुक्त हैं? क्या वन्य-जीवों, सूक्ष्म-प्राणियों के जीवमंडल(biosphere) को निर्बाधित रखने की जीवनशैली व परंपरा आज भी जीवित हैं 

क्या आस-पास के प्राचीन वृक्ष, पेड़-पौधे अक्षत हैं? उनका विस्तार निर्बाध है








जिस देश में गंगाजी को माँ का दर्जा प्राप्त था व है, जहाँ गंगाजल अमृततुल्य है अगर वहीँ गंगाजी दूषित हो जाये क्योंकि वो पूर्णत: निस्वार्थ भाव से बह रही है अपनी रक्षा या संरक्षण हेतु प्रयास उसकी प्रवृत्ति नहीं रही है तो फिर भ्रष्टाचार_युक्त वातावरण को भ्रष्टाचार_मुक्त का आवरण कितने समय तक ढकने में सफल रहेगा

पञ्च तत्व हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं जो उसे व्यवस्थित करते हैं, उसका स्वस्थ निर्वहन बिना किसी स्वार्थ के सुनिश्चित करते हैं उनका अनिरुद्ध चक्र हर प्रकार से इस सृष्टि, जीवन व मानवता के संरक्षित होने का प्रमाण है किन्तु यदि ये तत्व स्वयम ही उपेक्षित, प्रदूषित, पराधीन हैं तो भ्रष्ट्राचार की उपस्तिथि या अनुपस्तिथि का और क्या प्रमाण चाहिए, सर्वप्रथम इनकी सुरक्षा, स्वतंत्रता सुनिश्चित करना आवश्यक है अन्यथा भ्रष्टाचार_से_मुक्ति हेतु ईमानदारी से कोई विकल्प शेष नहीं दिखता।  

 पञ्च-तत्वों का दूषित होना व सबकुछ देख-समझ कर अनजान बने रहना वास्तव में भारतीय समाज के धर्मान्तरित दृष्टिकोण का ही परिणाम है।

Honesty Is The Best Policy

Honesty is still the Best Policy which encourages #Corruption_Free Society, #transparency allowing a an unconditional purposeful life to flourish and actually conveys THE FACT on which our Traditional INDOMITABLE FAITH in #सत्यमेव_जयते is based.

प्रकाश स्वत: ही अन्धकार दूर कर देगा

अमावस्या की काली रात को भी एक "दीये" की उपस्तिथि से प्रकाशित किया जा सकता है।
एक ईमानदार की उपस्थिति एक बेईमान का वर्चस्व कम करती है, बेईमानों को पकड़ने/जकड़ने में उर्जा व्यर्थ करने से उत्तम है की अच्छे व सच्चे को किसी न किसी रूप में अवसर प्रदान किया जाय।

आज के प्रदूषित वातावरण व दूषित दृष्टिकोण जनित चरित्र-संकट ने भ्रष्टाचार को भी पुनर्परिभाषित कर दिया है, व्याभिचार भी व्यापार के रूप में प्रचलित हुआ है और "माँ के सौदागर" व्यवसायी। 

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।  देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥


हमारे पास चारों ओर से ऐंसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न रोकने वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।

वेदों पर आधारित सनातनी संस्कृति से उद्दृत वाक्यांशों को बिना विचारे, धारण किये आयातित विकृत मानसिकता व दृष्टिकोण युक्त होकर कहने सुनने मात्र से हम उन कल्याणकारी विचारों, अज्ञात विषयों को प्रकट नहीं कर सकते जो भोगवादी वातावरण व सुविधासंपन्न व्यवस्था में अजन्मी ही रहती है।

 

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु
विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। 
देवा नोयथा सदमिद् वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥

Although we may apperciate "आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः" but is such #insight #innovative_idea #Out_of_Box_Thinking possible while following #Modern_Lifestyle #Western_Mindset

Our modernity actually discourages & ultimately kills any such pure natural process to exist, survive or take place in our modern society because we may dislike corruption but won't take steps to encourage honesty honestly.



Will we allow such views or vision conducive environment to persist?
Honestly our #BrainWashed_Views won't allow any #Free_Flow of knowledge in abundance without scruitning them using our educated learning(filters).

अज्ञः सुखमाराधयः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।

ज्ञानलवदुर्विदग्घं ब्रह्मापि तं नरं न रज्जयति॥


 



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