भारतीय विकास की मूल प्रवृत्ति पंचतत्वों का संवर्धन या विलोपन
विकास अगर वास्तव में विकास है और क्षेत्र को विकसित कर रहा है तो ये स्पष्ट दिखेगा और सभी को इसका अनुभव भी होगा। ये अनुभव किसी अनुमान या आंकड़ो में छिपे नहीं बल्कि प्रकृति, पर्यावरण व जीव जन्तुओ की खुशहाली से स्वत: ही ज्ञात हो जाता है।
मनुष्य द्वारा प्रकृति/पर्यावरण की उपेक्षा, अपने निजी/व्यवसायिक स्थलों से उनके विलोपन की अपेक्षा व प्रयास वस्तुत: परोक्ष रूप से इस पृथ्वी को भी अन्य ग्रहों की तरह जीवन-मुक्त करने की ही पहल है। पंचतत्वों की उपस्थिति जीवन घोतक है, वे जैव-विविधता #bio_diversity का संवर्धन करते हैं। किन्तु वर्तमान में प्रचलित होती संकीर्ण-विचारधारा मरुस्थल के पर्यायवाची #concerete_structure बहुमंजली इमारतें, गगनचुंबी-भवन न केवल सूर्य की किरण, वायु के प्रवाह, आकाशीय पिंडों के दर्शन आदि को बाधित करती है (न केवल रहने वालों के लिए बल्कि आस-पास के जीवों का भी), कुछ विधर्मी स्वार्थी -तत्वों द्वारा धन-उपार्जन को ही जीवन-लक्ष्य बनाया जा चूका है जिसके घातक परिणाम सम्पूर्ण श्रृष्टि भुगतने के लिए तैयार है।
चारों ओर बढता प्रदूषण, वायुमंडल, भूमंडल व अन्य प्राकृतिक संसाधनों को अवरुद्ध करते निर्माण, जो जीवन-चक्र को भी दिशाहीन कर एक अनियंत्रित अव्यवस्था को जन्म दे चुके हैं, जो आधारभूत भारतीय सनातन संस्कृति से भी बेमेल है।
भारतीय संस्कृति में सनातनी व्यवस्था को आदि काल से ही कुछ सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुरूप ढाला गया था, जो कभी भी और कहीं भी प्रकृति व पर्यावरण को दूषित या अवरुद्ध नहीं करते थे बल्कि उनका संवर्धन व स्वतंत्र व्यवहार सुनिश्चित करते थे।
वर्तमान में भोगवादियो के प्रभाव व संस्कारों से जनित व्यवस्था उन मूलभूत सनातनी सिद्धांतो के विपरीत अल्पदृष्टी व संकीर्ण विचारधारा के अनुरूप एक कालबद्ध नश्वर विकास की अवधारणा को प्रचारित कर रहे हैं बिना ये विचारे कि ये सृष्टि व जीवन, उन पंचतत्वों पर ही आधारित हैं जिन्हें वे अवरुद्ध व नष्ट कर रहे हैं।
Nature from the Viewpoint of Religion and Dharma | Dr. Mukul Kulshrestha
वर्तमान में एक प्राचीन संस्कृति, सनातन विचारधारा को ही "विकास" के नाम पर गुमराह किया जा रहा है, भारतीय .... को एक पिछड़ी पुरानी रुढ़िवादी सोच के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है
वो धन्य है भारत की जनता जिसने सही समय पर उचित नेतृत्व को सत्ता सौंपी जिसकी आस्था व विश्वास मूल भारतीय संस्कारों में अडिग थे, एक ठोस आधार पर आश्रित थे।
ब्याज की उम्मीद में मूल को ही नष्ट करने की ये प्रवृत्ति कितने समय और चलेगी कौतूहल का विषय है?
जिस का प्रभाव, दृष्टिदोष-मुक्त व्यक्तित्वों को आज भी चारों और दिख रहा है और दृष्टिदोष-युक्त उनके दुष्प्रभावों से प्रयत्क्ष-रूप में संघर्ष करते दिखने लगे हैं।
Indian culture, tradition in its purest form Prevented Pollution Pollutants Naturally to Prevent Modern Theory of Environmental Degradation.
Today we need to introspect, realize and redesign our lifestyle, ways of energy collection and consumption, cities, residences and education system too to match the silent techniques which we already have had in our tradition and culture but were forced to ignore them over centuries.
Indian government today is aware of these concerns because of the stand and vision of new age leadership in power since 2014, who is working towards our traditional holisitic approach in every sphere of life.
The problem is posed by those who follow this chain are part of it and still hold same old school of thoughts which isn't as ancient as traditional Indian but its unrefined approach makes it as such.
अन्धानुकरण भारतीयता का विकास या विनाश
हमारी मूल संस्कृति व प्रवृत्ति पंचतत्वों का संरक्षण व संवर्धन में निहित था जिनसे हमारी जैविक आवश्यकताएं भी पूरी होती थी, किन्तु आज उनको ध्वस्त कर एक शमशान की रचना को विकास कह कर संबोधित किया जा रहा है जो एक कच्ची, अविकसित अवधारणा पर आधारित है जो किसी भी प्रकार से हमारी मूल संस्कृति व परिवेश से अनुरूप नहीं।
विकास उस समृद्धि, परिपूर्णता को प्रतिबिंबित करती है जो उस परीवेश जिसमें हमने जन्म लिया व पले-पढ़े की मूल धारणा रही है जो अर्थ-उपाजर्न जैसे कृत्रिम आकड़ों पर आधारित कभी नहीं रही।
गोबर का कमाल | वैदिक प्लास्टर |
How to Build a Sustainable Home | The Magic of Mud
जबकि वर्तमान परिदृश्य में विनाश, विकास के पदचिन्हों के अनुकरण से ही संभव हो रहा है। विकास में विनाश की झलक देख पाना पश्चिमी शिक्षा-नीति व विचारों से प्रभावित विकास-पुरुषों के लिए असम्भव ही नहीं है, विश्व-भर में जलवायु-परिवर्तन का दोष जो माँ-प्रकृति पर आरोपित करते रहे हैं बिना ये देखे या सोचे कि उनके निर्माण, जीवन-शैली, वास्तुदोष से उत्पन्न असंतुलन ही इसके लिए जिम्मेदार है।
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